शिव तांडव स्तोत्रम् हिंदी में | Shiv Tandav Stotram Lyrics
शिव तांडव स्तोत्रम् हिंदी में पढ़ें। Full Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi with meaning. Chant this powerful Shiva stotra daily for peace.
विषय-सूची (Table of Contents)
शिव तांडव स्तोत्रम्: परिचय
भगवान शिव की स्तुति में रचे गए अनगिनत स्तोत्रों में से शिव तांडव स्तोत्रम् (Shiv Tandav Stotram) का अपना एक विशेष स्थान है। यह स्तोत्र अपनी ओजस्वी भाषा, जटिल छंदों और भगवान शिव के रौद्र और मनमोहक दोनों रूपों के वर्णन के लिए जाना जाता है। हर शिव भक्त इस स्तोत्र के शक्तिशाली कंपन और गहराई से परिचित है। यह सिर्फ एक पाठ नहीं, बल्कि शिव के प्रति गहरी भक्ति और समर्पण का एक काव्यात्मक प्रदर्शन है।
आज हम आपके लिए शिव तांडव स्तोत्रम् हिंदी में (Shiv Tandav Stotram in Hindi) उसके मूल संस्कृत श्लोकों के साथ और प्रत्येक पंक्ति के विस्तृत अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं। चाहे आप इस स्तोत्र को पहली बार पढ़ रहे हों या नियमित रूप से इसका पाठ करते हों, यह विस्तृत व्याख्या आपको इसके गहरे अर्थों को समझने और भगवान शिव से और अधिक जुड़ने में मदद करेगी।
शिव तांडव स्तोत्रम् का इतिहास और महत्व
शिव तांडव स्तोत्रम् का श्रेय लंकापति रावण को दिया जाता है, जो एक महान विद्वान, संगीतकार और भगवान शिव के परम भक्त थे। पौराणिक कथा के अनुसार, जब रावण ने अपने अहंकार में कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास किया, तो भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया। रावण पर्वत के नीचे दब गया और दर्द से कराह उठा। अपनी गलती का एहसास होने पर, रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्तुतिगान करना शुरू किया। उसने अपने दस सिरों और भुजाओं का उपयोग करते हुए, एक डमरू की ताल पर 1008 छंदों की रचना की, जिनमें से यह शिव तांडव स्तोत्रम् सबसे प्रसिद्ध है।
रावण के इस संगीत और भक्ति से शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने रावण को मुक्त कर दिया और उसे वरदान भी दिया। तभी से यह स्तोत्र शिव भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। इसका पाठ करने से व्यक्ति को शक्ति, शांति, समृद्धि और शिव की कृपा प्राप्त होती है।
शिव तांडव स्तोत्रम् हिंदी में अर्थ सहित
यहां शिव तांडव स्तोत्रम् के मूल संस्कृत श्लोक और उनका विस्तृत हिंदी अर्थ दिया गया है। ध्यानपूर्वक पढ़ें और भगवान शिव के दिव्य रूपों का अनुभव करें:
श्लोक 1
जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम् ॥१॥
अर्थ: जिनके बालों से बहने वाले जल से उनका कंठ पवित्र है, और जिनके गले में सांप है जो हार की तरह लटका है, और डमरू से डमट् डमट् डमट् की ध्वनि निकल रही है, भगवान शिव शुभ तांडव नृत्य कर रहे हैं, वे हम सबको संपन्नता प्रदान करें।
श्लोक 2
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
अर्थ: मेरी शिव में गहरी रुचि है, जिनका सिर अलौकिक गंगा नदी की बहती लहरों की धाराओं से सुशोभित है, जो उनकी बालों की उलझी जटाओं की गहराई में उमड़ रही हैं? जिनके मस्तक की सतह पर चमकदार अग्नि प्रज्वलित है, और जो अपने सिर पर अर्ध-चंद्र का आभूषण पहने हैं।
श्लोक 3
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
अर्थ: मेरा मन भगवान शिव में अपनी खुशी खोजे, अद्भुत ब्रह्माण्ड के सारे प्राणी जिनके मन में मौजूद हैं, जिनकी अर्धांगिनी पर्वतराज की पुत्री पार्वती हैं, जो अपनी करुणा दृष्टि से असाधारण आपदा को नियंत्रित करते हैं, जो सर्वत्र व्याप्त है, और जो दिव्य लोकों को अपनी पोशाक की तरह धारण करते हैं।
श्लोक 4
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
अर्थ: मुझे भगवान शिव में अनोखा सुख मिले, जो सारे जीवन के रक्षक हैं, उनके रेंगते हुए सांप का फन लाल-भूरा है और मणि चमक रही है, ये दिशाओं की देवियों के सुंदर चेहरों पर विभिन्न रंग बिखेर रहा है, जो विशाल मदमस्त हाथी की खाल से बने जगमगाते दुशाले से ढंका है।
श्लोक 5
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
अर्थ: भगवान शिव हमें संपन्नता दें, जिनका मुकुट चंद्रमा है, जिनके बाल लाल नाग के हार से बंधे हैं, जिनका पायदान फूलों की धूल के बहने से गहरे रंग का हो गया है, जो इंद्र, विष्णु और अन्य देवताओं के सिर से गिरती है।
श्लोक 6
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
अर्थ: शिव के बालों की उलझी जटाओं से हम सिद्धि की दौलत प्राप्त करें, जिन्होंने कामदेव को अपने मस्तक पर जलने वाली अग्नि की चिनगारी से नष्ट किया था, जो सारे देवलोकों के स्वामियों द्वारा आदरणीय हैं, जो अर्ध-चंद्र से सुशोभित हैं।
श्लोक 7
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
अर्थ: मेरी रुचि भगवान शिव में है, जिनके तीन नेत्र हैं, जिन्होंने शक्तिशाली कामदेव को अग्नि को अर्पित कर दिया, उनके भीषण मस्तक की सतह डगद् डगद्... की घ्वनि से जलती है, वे ही एकमात्र कलाकार है जो पर्वतराज की पुत्री पार्वती के स्तन की नोक पर, सजावटी रेखाएं खींचने में निपुण हैं।
श्लोक 8
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
अर्थ: भगवान शिव हमें संपन्नता दें, वे ही पूरे संसार का भार उठाते हैं, जिनकी शोभा चंद्रमा है, जिनके पास अलौकिक गंगा नदी है, जिनकी गर्दन गला बादलों की पर्तों से ढंकी अमावस्या की अर्धरात्रि की तरह काली है।
श्लोक 9
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अर्थ: मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनका कंठ मंदिरों की चमक से बंधा है, पूरे खिले नीले कमल के फूलों की गरिमा से लटकता हुआ, जो ब्रह्माण्ड की कालिमा सा दिखता है। जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
श्लोक 10
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
अर्थ: मैं भगवान शिव की प्रार्थना करता हूं, जिनके चारों ओर मधुमक्खियां उड़ती रहती हैं शुभ कदंब के फूलों के सुंदर गुच्छे से आने वाली शहद की मधुर सुगंध के कारण, जो कामदेव को मारने वाले हैं, जिन्होंने त्रिपुर का अंत किया, जिन्होंने सांसारिक जीवन के बंधनों को नष्ट किया, जिन्होंने बलि का अंत किया, जिन्होंने अंधक दैत्य का विनाश किया, जो हाथियों को मारने वाले हैं, और जिन्होंने मृत्यु के देवता यम को पराजित किया।
श्लोक 11
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
अर्थ: शिव, जिनका तांडव नृत्य नगाड़े की ढिमिड ढिमिड तेज आवाज श्रंखला के साथ लय में है, जिनके महान मस्तक पर अग्नि है, वो अग्नि फैल रही है नाग की सांस के कारण, गरिमामय आकाश में गोल-गोल घूमती हुई।
श्लोक 12
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
अर्थ: मैं भगवान सदाशिव की पूजा कब कर सकूंगा, शाश्वत शुभ देवता, जो रखते हैं सम्राटों और लोगों के प्रति समभाव दृष्टि, घास के तिनके और कमल के प्रति, मित्रों और शत्रुओं के प्रति, सर्वाधिक मूल्यवान रत्न और धूल के ढेर के प्रति, सांप और हार के प्रति और विश्व में विभिन्न रूपों के प्रति?
श्लोक 13
कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
अर्थ: मैं कब प्रसन्न हो सकता हूं, अलौकिक नदी गंगा के निकट गुफा में रहते हुए, अपने हाथों को हर समय बांधकर अपने सिर पर रखे हुए, अपने दूषित विचारों को धोकर दूर करके, शिव मंत्र को बोलते हुए, महान मस्तक और जीवंत नेत्रों वाले भगवान को समर्पित?
श्लोक 16 (फला स्तुति)
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
अर्थ: इस स्तोत्र को, जो भी पढ़ता है, याद करता है और सुनाता है, वह सदैव के लिए पवित्र हो जाता है और महान गुरु शिव की भक्ति पाता है। इस भक्ति के लिए कोई दूसरा मार्ग या उपाय नहीं है। बस शिव का विचार ही भ्रम को दूर कर देता है।
शिव तांडव स्तोत्रम् पाठ के लाभ
शिव तांडव स्तोत्रम् का नियमित पाठ करने से कई आध्यात्मिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं:
- आत्मविश्वास में वृद्धि: इस स्तोत्र की ओजस्वी प्रकृति और शक्तिशाली शब्द मन में साहस और आत्मविश्वास भरते हैं।
- भय से मुक्ति: भगवान शिव के रौद्र रूप का यह वर्णन भक्तों को सभी प्रकार के भय और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाता है।
- शांति और एकाग्रता: नियमित पाठ से मन शांत होता है, एकाग्रता बढ़ती है और व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से सशक्त होता है।
- समृद्धि और सफलता: भगवान शिव की कृपा से जीवन में समृद्धि आती है और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
- ग्रह दोष निवारण: माना जाता है कि इसका पाठ करने से कुंडली में मौजूद विभिन्न ग्रह दोषों का शमन होता है।
- मोक्ष की प्राप्ति: अंततः, यह स्तोत्र भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति विकसित करता है और मोक्ष के मार्ग को प्रशस्त करता है।
स्तोत्र पाठ के लिए कुछ सुझाव
इस स्तोत्र का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है:
- सही उच्चारण: संस्कृत शब्दों का सही उच्चारण महत्वपूर्ण है। यदि आप संस्कृत नहीं जानते, तो आप YouTube पर उपलब्ध प्रामाणिक ऑडियो या वीडियो का सहारा ले सकते हैं।
- शुद्ध मन: पाठ शुरू करने से पहले मन को शांत करें और भगवान शिव पर ध्यान केंद्रित करें।
- नियमितता: प्रतिदिन या कम से कम सोमवार को इसका पाठ करने का प्रयास करें।
- सुबह का समय: सुबह स्नान करने के बाद और पूजा से पहले का समय पाठ के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
निष्कर्ष: शिवकृपा का अनुभव करें
शिव तांडव स्तोत्रम् भगवान शिव की अद्भुत शक्ति और रावण की अनूठी भक्ति का एक प्रमाण है। इसके शक्तिशाली छंदों और गहन अर्थों को समझना आपको आध्यात्मिक शांति और प्रेरणा प्रदान करेगा। हमें उम्मीद है कि यह शिव तांडव स्तोत्रम् हिंदी में (Shiv Tandav Stotram Lyrics in Hindi) आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा और आपको भगवान शिव के और करीब लाएगा।
नियमित रूप से इसका पाठ करें, इसके अर्थों पर मनन करें, और भगवान शिव की असीम कृपा का अनुभव करें। ॐ नमः शिवाय!
अधिक भक्तिमय सामग्री, मंत्रों और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए हमारी वेबसाइट पर आते रहें। आपकी आध्यात्मिक यात्रा शुभ हो!
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